मारवाड़ के महाराजा हनवंतसिंह ने भले ही साढ़े चार साल की अल्प अवधि के लिए गद्दी संभाली, लेकिन देश की आजादी के समय के उथल-पुथल भरे दौर में वे सुर्खियों में बने रहे। वह जितने अपने प्रेमप्रसंगों के लिए चर्चा में रहे उतने ही रिसायत के विलय को लेकर सबकी नजर में बने थे। 26 जनवरी 1952 को तीसरी पत्नी जुबैदा के साथ प्लेन क्रैश में उनका निधन हुआ था। देश के पहले लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त का जश्न मनाने वह जुबैदा के साथ प्लेन में उड़े और दुर्घटना का शिकार हो गए।
ऐसे थे महाराजा हनवंतसिंह
मारवाड़ रियासत के राजा हनवंतसिंह का जन्म 16 जून 1923 को हुआ। हनवंतसिंह का पहला विवाह 1943 में ध्रांगदा की राजकुमारी कृष्णाकुमारी के साथ हुआ। नववधू कृष्णा कुमारी के गृह प्रवेश के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध उम्मेद भवन का उद्घाटन किया गया था। 9 जून 1947 को तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह का महज 44 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। इसके बाद हनवंत सिंह उनके स्थान पर मारवाड़ के शासक बने। 1947 की शुरुआत में हनवंतसिंह को इंग्लैंड की सैंडा मैकायर्ड से प्यार हो गया। दोनों ने 1948 में शादी कर ली। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने हनवंत की मां को फोन कर उनके दूसरे विवाह की जानकारी दी थी। यह शादी डेढ़ साल ही चल पाई और सैंड्रा इंग्लैंड चली गई। हनवंत भी उसके पीछे इंग्लैंड गए, लेकिन बात बन नहीं पाई।
जुबैदा को दे बैठे दिल
1949 में उम्मेद भवन में आयोजित एक समारोह में मुंबई से नाचने के लिए आई जुबैदा को हनवंतसिंह दिल दे बैठे। हनवंतसिंह ने जुबैदा से शादी करने का निर्णय कर लिया। उनके इस निर्णय का जोरदार विरोध हुआ। उनके परिजनों का कहना था कि नाचने वाली और तलाकशुदा ऊपर से मुस्लिम और एक बच्चे की मां से विवाह करना उचित नहीं होगा। कहा जाता है कि सारे विरोध को दरकिनार कर हनवंतसिंह ने 17 दिसम्बर 1950 को ब्यावर में आर्य समाज मंदिर में जुबैदा का नया नामकरण विद्यारानी कर शादी कर ली। इसका विरोध हुआ और उन्हें उम्मेद भवन में जुबैदा के साथ रहने की अनुमति नहीं मिली। ऐसे में वे मेहरानगढ़ फोर्ट में रहने लगे। दो अगस्त 1951 को जुबैदा ने एक पुत्र टूटू को जन्म दिया, जिसकी 1981 में जोधपुर शहर में हत्या हो गई थी।
क्रैश हुआ विमान
पहले आम चुनाव जोधपुर लोकसभा सीट से मिली भारी बढ़त के बाद खुशी मनाने के लिए वे अपना हवाई जहाज लेकर 26 जनवरी 1952 को जुबैदा के साथ घूमने निकले। पाली जिले में उनका विमान क्रैश हो गया। इस हादसे में जुबैदा के साथ उनका निधन हो गया। उनका विमान नीचे गिरने का कारण कभी सामने नहीं आ सका। ऐसा माना जाता है कि कलाबाजी दिखाने के दौरान नीचे आया उनका विमान वापस ऊपर नहीं उठ पाया।
विवादों से हमेशा रहा नाता
हनवंतसिंह के पिता का देश आजाद होने से कुछ माह पूर्व निधन हो गया। महज 24 साल की उम्र में वे इस बड़ी रियासत के महाराजा बन गए। उसी वर्ष उन्हें भारत या पाकिस्तान में मारवाड़ रियासत के विलय का निर्णय करना था। वे पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बातों में उलझ गए। जिन्ना ने उन्हें खाली पेपर पर हस्ताक्षर करके थमा दिया और कहा- वे जो चाहे मांग ले और बदले में पाकिस्तान में विलय पर सहमति जता दें। बाद में बड़ी मुश्किल से सरदार पटेल ने उन्हें मारवाड़ का भारत में विलय करने के लिए राजी किया।
पहले चुनाव में उतारे प्रत्याशी
देश के पहले आम चुनाव में उन्होंने मारवाड़ में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने का निर्णय किया। कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया और उन्हें चेतावनी दी कि वे नतीजे भुगतने को तैयार रहे। इसके बावजूद उन्होंने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे बल्कि स्वयं हनवंतसिंह ने भी जोधपुर से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। मतगणना में उन्हें भारी बढ़त मिल चुकी थी। बाद में उन्होंने और उनके प्रत्याशियों ने शानदार जीत हासिल की। लेकिन, अपनी पार्टी की शानदार जीत को देखने के लिए वे जीवित नहीं रह पाए।